यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

१९५ राजविलास । जनु सोर लाइ ॥ मोहित सु राजगुरु जग प्रसिद्ध । सु गरीबदास बहु मंत शुद्ध ॥ ६६ ॥ गढ़पती महेजा अमर सिंह । बर रतन राव षीची अवीह ॥ सद्दे सुननी उमराव हब्ब । आदर समान जिन गुरु अदब्ब ॥ ७ ॥ ___ प्रणमेबि सकल महाराण पाइ। बैठक सुकीय बैठे सुसाइ ॥ श्री राज सिंघ राना सनूर ॥ कहि नाम देत बीरा कपूर ॥ ६८॥ ॥ कवित्त ॥ सुनहु सकल सामंत रान पे राजेसर । सजि दल बल सब्बान इत्थ भावहि असुरेशर । युद्ध करे जिहि थान बेगि सो थान बतावहु । भज्जै जहँ यव- नेश असुर संहरि घर भावहु । बिन युद्ध किये बुज्झै न इह दिल्लीपति ओरँग दुमन ॥ इक मंत होइ सब अवनि पति पत्याए पारो पिशुन ॥ ६८ ॥ - अखें तब उमराव जारि कर युगल साइ सम । असुर कहा हम अग्ग अवहि ठिल्ले करि उद्धम ॥ सिहांसन सोभियहि साँइ हम हुकम मुकिज्जै । दिशि दिशि सज्जिब दुर्ग रटक रिपु सों इहि लिज्जै ॥ जैहै मुभज्जि इह यवन दल कबलों रहि करिहें कलह । गहि लेहु असुर पति गज चढ़यो सजि चतुरंग पष्षर सिलह ॥ ७० ॥