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१८० राज विलास। अवनीश तुम षग्ग तेज बंदे षलक । राजेश राण जगतेश सुन तुम सब हिन्दू शिर तिलक ॥ १८७ ॥ शीसोदा चहुन तुअर पांवार रहवर । हाड़ा कूरभ गोड़ मोरि यद्दव बड़गुज्जर ॥ झाला भट्टी डोड दह्या देवरा बुंदेला । बड़गोता दाहिमां डाभि बारड बग्घेला ॥ खीची पड़िहार सु चावड़ा संषुल गोहिल धंधलह । राजेश राण सब हिन्दुपति टांक पुंडीर सु सिंधलह ॥ १८ ॥ तिन प्रभु शरनहि तक्कि धाइ आवहि श्रासा धरि । राखहु श्री महाराण हिन्दुपन सकल असुर हरि ॥ दिशि दिशि में दीवान सांइ सम कोइ न दिट्ठो । सुलतानह हम सत्य रोस करि औरँग रुट्ठो॥ अमरख सुचित्त रक्खें अधिक क्षत्रीपन मेटंत खल । असुराइन सों ब उथप्पि के बसुमति लीजै अप्प बल ॥ १८ ॥ ॥दोहा॥ इहि बिधि गुरुता लखि अधिक पठया दूत प्रसिद्ध । पत्तो सो उदयापुरहिं अबिलंबन अबिरुद्ध ॥ १० ॥ हिन्दू पति भेटे हरषि दिय पय नमि अरदास । बिनय सु अक्खें मुष बचन तानन्दित सोल्लास ॥११॥ बंची सो अरदास बर उपमा बिनय अनूप । कमधज्ज रुक बिलेश को सकल तिख्यो सु सरूप॥१२॥