राजविलास। १११ ॥ छंद मोती दाम ॥ जगे कमधज्ज महा रन योध। किये' दूग रत्त भये भर क्रोध ॥ बजी बर बीरन हक्क बहक्क । छुटे. जनु इभ्भ महा मद छक्क ॥ १३८ ॥ . धरातलि धावत उहि धमक। चहूं दिशि दानव देव चमक्क ॥ कढ़ी कर नागिनि सी करवाल । जितं तित ढ़ाहत है गज ढाल ॥ १४० ॥ . लसे मनु लोह कि आग्गि लपट्ट। झनकत नद्द परी षग झट्ट । षलं दल कीजत पंड बिहंड । जितं तित मीर परे बिन मुंड ॥ १४१ ॥ खड़क्कत हड्ड सुजड्ड करार । करे जनु कट्ठिय शैल कवार । भभक्त श्रोन सु. इभ्भ भKड । जितं तित जोर मच्यो पल पंड ॥ १४२ ॥ . . परे जनु पत्थर रूप पठान । हये जम दाढ़नि कट्ट जुवान ॥ भजे नर कायर भारय भीर । गजें प्रति सद्दनि ब्योम गुहीर ॥ १४३ ॥ - किते बिन शीश नचन्त कमन्ध । लडब्बड़ मल्य लटक्कत कन्ध ॥ किते धन घाइनि छक्क घुमन्त । जितं तित दोरत पीसत दन्त ॥ १४४ ॥ - उझटिय आमुरि सेन, अलेख । जितं तित सत्थर ह रहे सेस ॥ गिते कुन गरबर भक्खर ग्यान । बलोचिय लोदिय विद्धिय बान ॥ १४५ ॥ ...
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