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राजबिलास । गजपण तीस गुहीर साल सु बिसाल साढ़ सत । गज समान ग्रापा गरिष्ट मनु मंझि महीभृतं ॥ शीशक सु पङ्क चना सघन चेजागर लक्खक चुनत । ढोवन्त सहस नर मिलि सलप सो सुवत्त कहत न बनत ॥१४४ ॥ पनत केइ नर खानि पल्ल कट्ठन्त पहारनि । करत अन्स चोरन्स सुघन जंबू रस भारति ॥ गढत केइ गुरु ग्राव सद्द नीये न टंकि सुर । सकटनि केइ धारन्त सबर मिलि मिलि सहसक नर। भानन्त उमग्गनि मग्ग परि ज्यों पटगर ताना तनत । राजेश राण रवि राज सर सो सुबत्त कहत न बनत ॥ १४५ ॥ सत्त बरस सम्बन्ध नीम सोझन्त लगे नित । लगी दिनार सुलक्ख अधिक जल राशि उलिंचत । बन्ध्यों तदनु बँधान हिन्दुपति कीन महाहठ ॥ महधन भये मजूर भग्यो दुरभष्य भैर भट ॥ मंगल गावंत मजूर तिय लुम्ब झुम्ब भूषन लसंति । आसीस बदन्ति अनेक तिय चिरजीवहु चीतोर पति ॥ १४६ ॥ इंद्र सभा अनुहारि सभा सरवर उपकंठहि । मंडि आप महाराण 'अङ्ग उलसत उतकंठहि ॥ सब नर तियनि सुनाइ हुकुम श्रीमुखहिं हंकारत ।