राजविलास । चम्पक गुलाब जूही चमेलि, सेवन्ति सुरभि रुचि रायबेलि । केवरा करणि केतकी कुन्द, मालती माल मचकुन्द वृन्द ॥ ८१॥ सतपत्र दवन मुग्गर सुवास, गुमगुमत भौंर गन गन्ध आस । डहडहति श्रवति रस पुष्प दाम, ठह- राय ठवत हरि कंठ ठाम ॥२॥ लोवान अगर चन्दन अबीर, महमहिय धूप धीमहि समीर । सुरलोक सुरभि संपत्त सोइ, सुरनाथ सकल सुर हरष होइ ॥ ३ ॥ बर कनक नाल सु बिसाल माहि, संजोइ दीप सह सक सप्राहि । जिगमिगति योति तम छोति हारि, यो साँइ सँमुख भारति उतारि ॥ ८४ ॥ ॥ कवित्त ॥ आरति दीप उतारि जपत जयकार नृपति जन । अव सुभोग हरि जोग विप्र ढोवन्त वियक्खन ॥ कञ्चन थाल कचोल कनक भंगार गंग जल । मेवा बहु मिष्ठान तप्त सुरही घृत तंदुल ॥ पूपिका सघृत तीवन प्रचुर सक्कर अमृत दधि सहित । सु अघाइ कीन मुख हच्छ शुचि तदनुसार तम्बोल धृत ॥ ५॥ सकल सूर सामन्त अंग चरचे यषि कर्दम । घसि केसरि घनसार मलय सृगमद सांधे सम ॥
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