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राजबिलास । रट्ठौर रङ्क । भल भाव भक्ति भोजन सु भष्य, पूरी यु षन्ति नव नव प्रत्यक्ष ॥ ७ ॥ महाराण दान जनु मेघमंड, उंनयौं कानक धारा अखण्ड । याचकनि चित्त पूरी जगीस, अभिनवा इंद मेवार ईश ॥८॥ चतुरंग चंग सेना सँजुत्त, राजेश राण जगतेश पुत्त । रठौरि रानि ध्याही सुरंग, आये यु उदय पुर बर उमंग ॥ ८ ॥ सिंगारि नगर किन्नौ सुरूप, प्रति द्वार तुंग तारन अनूप । दरसन्त कन्तिमणि द्यौसकार । हीरा प्रवाल मणि मुत्ति हार ॥ १०० ॥ जरबाफ बसन बहु मुकर जाति, किरनाल किरन तिन इक्क होति । महमहति सुरभि वर पुष्प माल, बहु भौंर भवत सोभा बिशाल ॥ १०१ ॥ ___बाजार चित्र कोने विचित्र, पट कूल जरी मुख- मल पवित्र । सिंगारि हट्ट पट्टन सु चंग, अति सोह साज तोरन उतंग ॥ १०२ ॥ नागरिय नारि बहु बरनि नेह, शृंगार सकल सजि सजि सुगेह। गावंत धवल मंगल सुगीत, रम- नीक कंठ कलकंठ रीति ॥ १०३ ॥ ___उतमांग पूर्ण कुंभह अनूप, भल सेन वदावहिं समुष भूप । प्रभु धात मध्य सोवन पुनीत, ए राज