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१९६ . राजविलास । राक अश्व प्रारब उतंग, चंचल सचाल जिन रूप चंग । कांबोज कछि हय काशमीर, तत्ते तुषार जनु छुट्टि तीर ॥ ८ ॥ पढ़ि पानि पन्य पर पवन पन्थ, गिनि कनक तोल मोलह सु ग्रंथ । बङ्गाल बाजि वर बिविध वान, पंधारि फेंग षिति खुरासान ॥१॥ साकति सुवर्ण वर सकल साजि, बनि रवि तुरङ्ग उपम सु बाजि । धमकन्त धनि जिन पय धमक्क, झिलती सु झूल मुख मल झलक्क ॥ २ ॥ ___खजमति सुदार दीनी खुवासि, रम्भा समान तनु रूप राशि । दासी सु. जान नव रूप देह, जानन्त मन्त पर चित्त जेह ॥ ३ ॥ भूषन सु हेम नग जरित भव्य, दीने अपार कञ्चन सु द्रव्य । मुक्ताफल गुरु बदु मोल माल, भल भेट करे कमधज भुवाल ॥ ४ ॥ मृदु फास कनक तोलह महन्त, जरबाफ वसन दुति जिगमिगन्त । पटकूल और कहते न पार, सुखपाल सेज चारे सु सार ॥ ५ ॥ दाइजा एह नप मान दीन, महिराय सकल भूपति प्रवीन । मृगमद कपूर केसरि महक्क, दिसि पूरि सुरभि डंबरु डहक्क ॥ ६ ॥ अर्च यषि कई म सकल अंग, रसू रीति रखि