राजबिलास। रसना सुरंती अवंति नव रस तालु मृदु तर तासयं । सतपत्र पुष्प समान सुरभित अधिक बदन उसासयं ॥ कलकंठ बचन विलास कुहकति अगम नि- गम उछारनी। अद्भुत अनूप मराल आसनि जयति जयजगतारनी ॥ २२ ॥ शुकराय चंचु कि भुवनमनिशिष नासिका बर निरखियै । कलधौत नथ मधि लाल मुत्तिय ऊपमा' आकरषियै ॥ मनु राज दर गुरू शुक्र मंगल सोह बर संभारनी। अद्भुत अनूप मराल प्रासनि जयति जय जगतारनी॥ २३ ॥ अरबिंद पुष्प कि मीन अक्ष सु प्रचल षंजन पेषियं । सारंग शिशु दूग सरिस सुंदर रेह अंजन रेषियं ॥ संभृत्त जुग जनु सुधा संपुट विश्व सकल विहारनी । अद्भुत अनप मराल आसनि जयति जय . जगतारनी ॥ २४ ॥ मनु कनक संपुट सुघट मंजुल पिशित .पुष्ट कपोल दो। दीपंत श्रुत जनु दोइ रवि ससि लसत कुंडल लोल दो ॥ इन हेत अति उद्योत प्रानन विधन सघन विडारनी। अद्धत अनूप मराल प्रासनि जयति जय जगतारनी ॥ २५ ॥ कोदंड प्राकृति भृकुटि कुटिलिति मानु भमहिं सुमधुकरं। लहि कमल कुसुम सुवास लोयन स्त्रैर सं-
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