पृष्ठ:रहीम-कवितावली.djvu/९१

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रहीम-कवितावली। रूप-गर्विता- छीन, मलिन, विष-भइया, औगुन तीन । ‘मोहिं कह चन्द-बदनिश्रा, पिय मति हीन ॥ ३५॥ ॥ रातुल भयसि मुगउँश्रा, निरस पखान । यह मधु-भरल अधरवा, करसि समान ॥ ३६ ॥ प्रेम-गर्विता- आपुहि देत कजरवा, Dदत हार । चुनि पहिराव चुनरिश्रा, प्रान-अधार ॥ ३७॥ औरन पाय जवकवा, नाइन दीन । तुम्हें अँगोरत गोरिमा, न्हान न कीन ॥ ३८॥ नायिकावों के और दस भेद । १-पोषितपतिका । मुग्धा-प्रोषितपतिका- ते अब जासि बेइलिश्रा, जरि-बरि मूल । बिनु पिय सूल करेजवा, लखि तुव फूल ॥ ३६॥

  • महात्मा तुलसीदासजी के इस दोहे में ऐसाही भाव है:-

जन्म सिंधु पुनि बंधु विषं, दिन मलीन सकलंक । सिय मुख समता पाव किमि, चन्द्र बापुरो रंक ॥ ३६-१-रंगदार, २-मूंगा, ३-पत्थर, ४-मिठास से भरा हुआ, ____५-अधर। ३-१-जावक-महावर। . ३६-१-बेलि-बेला।