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बरवै नायिका भेद । ३६ द्वितीय अनुसयना- धीरज धरु किन गोरिश्रा, करि अनुराग। जात जहाँ पित्र देसवा, घन बर बाग ॥ २८ ॥ जनि मरु रोइ दुलहिया, करि मन ऊन ।। सघन कुंजी ससुररित्रा,ौ घर सून ॥ २६ ।। तृतीय अनुसयना- मितवा करनि पसुरिश्रा, सुमन सपात । फिरि-फिरिताकि तरुनिश्रा, मन पछितात ॥ ३०॥ मित उतते फिरि श्राओ, देखि अराम । मैं न गई श्रमरैया, रह्यो न काम ॥ ३१ ॥ गणिका । लखि लखि धनिक नयकवा, वनवति भेख । रहि गइ हेरि अरसि, कजरा रेख ॥ ३२॥ अन्य सम्भोग दुःखिता- मैं पठई जेहि कजवा, प्राइस साधि। . छुटिगो सीस. जुरववा, दिद करि बाँधि ॥ ३३ ॥ सखि इत हरबर आवत, भो पथ खेद । रहि-रहि लेत उससवा, श्री तन सेद ॥ ३४॥ २६-१-दुलहन-बहू, २-खिन्न । ३२-१-पारसी-स्त्रियों के अंगूठे में पहिनने का एक आभूषण होता है जिसमें ऊपर की ओर एक गोल शीशा लगा रहता है। -