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ऐतिहासिक-जीवन


खाना से कुछ मनमुटाव हो गया। इसपर पर्वेज़ ने जहाँ- गीर के पास इनकी बहुत शिकायत लिख भेजी। ये वापस बुला लिए गए। फिर भी जहाँगीर ने इसका अच्छा मान किया और इनकी मंसब बढ़ा दी। इसके बाद भी इनका आना-जाना दक्षिण में लगा ही रहा।

सं० १६७९ में पश्चिमोत्तर सीमाप्रान्त में अशान्ति फैली। शांति-स्थापना के लिए शाहजहाँ और रहीम वहाँ भेजे गए। शाहजहाँ की अन्तर रुचि और ही प्रतीत हुई। नूरजहाँ बेगम जो जहाँगीर के स्थानपर स्वयम् ही राज-काज देखा-भाला करती थी इसबात का पता पा गई। वह पहले से ही इनसे कुछ असन्तुष्ट-सी रहा करती थी। उसने देखा कि दो ज़बर्दस्त प्रतिरोधी तैयार होगए हैं तो उसने एक बड़ी अच्छी तरकीब सोची। उसने झट शाह- ज़ादा पर्वेज़ को युवराज बना दिया और महाबतखाँ को खानखानाकी पदवी देकर मुक़ाबिले के लिए भेज दिया।

महावतखाँ ने खानखाना को तो क़ैद कर लिया। इनकी सारी सम्पत्ति ज़ब्त कर ली गई और यह भी कहा जाता है कि इनका एक लड़का, जो उस समय आगरे में ही था, पकड़ लिया गया और बाद को मारडाला गया। यद्यपि रहीम का इसमें किंचित् भी दोष नहीं था और उन्होंने कभी भी शाहजहाँ के मन्तव्य को स्वीकार नहीं किया था; फिर भी राजकार्यों में इन बातों को कौन देखता