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रहीम-कवितावली।

जो रहीम होती कहूँ, प्रभु गति अपने हाथ ।
तौ को धौं केहि मानतो, आप बड़ाई साथ ॥ ७३ ॥
जो रहीम मन हाथ है, मनसा कहुँ किन जाहि ।
जल मैं ज्यों छाया परी, काया भीजति नाहि ॥ ७४॥

जो रहीम बिधि बड़ किए, को कहि दूषन काढ़ि।
चन्द्र दूबरो कूबरो, तऊ नखत तैं बाढ़ि ॥ ७५ ।। *
जो रहीम करिबो हुतो, ब्रज को यही हवाल।
तौ कत मातहिं दुखदियो, गिरिवर-धरि गोपाल ॥ ७६ ॥

जो नृप बासर निसि कहै, तौ कचेपवी देखाउ।
रहिमन जो रहिबो चहौ, कहौ उसी को दाँउ ॥ ॥ ७७ ॥
जो रहीम पग तर परै, रगरि नाक अरु सीस।।
निठुरा आगे रोइबो, आँस गारिबो खीस ॥ ७८ ॥

जो रहीम कोटिन मिलै, धिक जीवन जग माहिं ।
आदर घटो नरेस ढिग, बसे रहे कछु नाहिं ॥ ७९ ॥


  • ७५-महात्मा तुलसीदासजी का भी एक ऐसाही दोहा है।

होहिं बड़े लघु समय सह, तौ लघु सकहिं न काढ़ि।
चन्द दूबरो कूबरो, तऊ नखत ते बाढ़ि ॥

+ ७६-इसका दूसरा चरण ऐसा भी पाया जाता है:-

तौ काहे कर पर धरयो, गोवर्धन गोपाल ।

७७-१-क्षीण तेज की तारक मंडली ।

७८-१-व्यर्थ ।E