पदाधिकारी बना लिया था। रहीम इन्हीं के लड़के थे।
इनका जन्म संवत् १६१३ विक्रमी में लाहोर में हुआ था।
इनका पूरा नाम अब्दुल रहीमख़ाँ ख़ानख़ाना था।
हुमायूँ के मरने के समय उसके पुत्र अकबर की अवस्था बहुत थोड़ी थी। उसने अकबर को राजगद्दी पर बिठा कर सारा राज्य-भार बैरमख़ाँ को सौंप दिया और आप स्वर्ग- वासी होगया। बैरमख़ाँ बड़ी योग्यता से राजकाज चलाता रहा। लेकिन जैसा कि कहा गया है एक म्यान में दो तलवारें नहीं रह सकतीं -- कुछ बैरमख़ाँ के स्वाधिकार से तथा कुछ अकबर के उद्धतपने से आपस में मनोमालिन्य पैदा हो गया; जिससे अकबर ने शासन की बागडोर अपने हाथ में ले ली। इस समय अकबर की अवस्था केवल १६ वर्ष की थी। यह बात बैरमख़ाँ को बुरी मालूम हुई और उसने विद्रोह करने की धमकी दिखाई। किन्तु कुछ बस न चलने पर क्षमा-प्रार्थना की और अकबर के आदेश के अनुसार हज करने के लिए प्रस्थान करना पड़ा। इनके साथ रहीम और उनकी माँ भी थीं। कहा जाता है कि गुजरात में पहुँचने पर एक अफ़गानी ने पुरानी शत्रुता के कारण बैरमख़ाँ को मार डाला।
जब यह समाचार अकबर को मिला तो उसने एक
दूत भेजकर रहीम को उनकी माँ के साथ आगरे बुला
लिया। इस समय रहीम की अवस्था केवल ६ वर्ष की