पृष्ठ:रहीम-कवितावली.djvu/४२

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सदृश-भाव।


नैन जोरि मुख मोरि हँसि,नैसुक नेह जनाय ।

आगि लेन आई जु तिय,मेरे गई लगाय ॥

मतिराम
 

सेज बिछाय पलँगिआ,अग सिंगार।

चितवति चौंकि तरुनिआ,दै दिग द्वार ॥

रहीम
 

सुन्दरि सेज सँवारि कै,सब साजे सिंगार ।

दृग कमलन के द्वार पर,बाँधे बन्दनवार ॥

मतिराम
 

करत नहीं अपरधवा,सपनेहु पीउ ।

मान करन की बिरियाँ,रहिगो हीउ ॥

रहीम
 

सपनेहू मनभावतो, करत नहीं अपराध ।

मेरे मन में ही रही, मान करन की साध ॥

मतिराम
 

मतिराम उपरोक्त दोहों को रहीम से उत्तम बना सके हैं।

रहीम का दोहा नं० ३५ और सोरठा नं० ७ अहमद के नाम से भी पाए जाते हैं । केवल नाम का परिवर्तन है। रहीम की मृत्यु के समय अहमद केवल १२ वर्ष के थे और उनकी कविता भी तब प्रारंभ नहीं हुई थी। अतः ये छन्द रहीम के ही हैं । रचना का खयाल करके भी यह बात सिद्ध की जासकती है । अब अहमद की रचना में