बनाए हैं । इन छन्दों में प्रायः सभी भर्तृहरि के बनाए हुए हैं। ये सभी कवि रहीम के पूर्ववर्ती हैं।
अब उन कवियों का हाल सुनिए जिन्होंने रहीम के भाव अपने छन्दों में अपनाए हैं । ये रहीम के परवर्ती कवि हैं।
मतिराम के तीन दोहों में रहीम के एक सोरठे और दो बरवों के भाव पाए जाते हैं । रहीम के भावों को लेकर इन्होंने अच्छा दिखा पाया है । यह बात अवश्य है कि रहीम से मतिराम को कविता करना अधिक स्वाभाविक था। यही कारण है कि मतिराम ने और नमक-मिर्च लगाकर उन्हें रहीम से अच्छा गढ़ कर दिखा दिया है । फिर भी श्रेय रहीम को है, मतिराम को नहीं । क्योंकि रहीम को उन भावों के उद्भाव के लिये जहाँ स्वयम् दिमाग लड़ाना पड़ा था वहाँ मतिराम को केवल भाषा में ही प्रयत्न करना पड़ा। दूसरे यह बात भी है कि यदि नक़ल करनेवाले में योग्यता है तो वह असल से अच्छा तैयार कर दिखा सकता है।
इसी सिलसिले में उन दोनों कवियों की रचना को मिलाने के लिए हम उन्हें नीचे देते हैं-
गई आगि उर लाय, आगि लैन आई जु तिय ।
लागी नाहिं बुझाय, भभकि-मभकि बरि-बरि उठै ॥