पृष्ठ:रहीम-कवितावली.djvu/३३

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३२
रहीम का परिचय।


भी तृप्ति नहीं होती। इसी पर रहीम कहते हैं --

नयन सलोने अधर मधु, घटि रहीम कहु कौन।

मीठो भावे लौन पर, अरु मीठे पर लौन॥

नेत्रों में जितना सलोनापन होता है, अधरों में उतनी ही मिठास होतीहै तो फिर किसको घट-बढ़कर कहा जाय। रहीम ने प्रेमी-युगुल को सन्मुख रखकर चित्रवत् प्रत्यक्ष करदिया है। प्रेमी-प्रेमिका के सरस अवलोकन से वशीभूत होकर अंग-अंग ढीला पड़ जाता है। इस अवस्था के उप- रान्त उसे अधरामृतपान करना ही सहज होता है। निर्निमेष नेत्रों से अवलोकन और अधर-रस का पान दोनों उसके प्रिय-पदार्थ हैं। रहीम ने एक सजीव चित्र खींचकर इनका कैसा अच्छा वर्णन किया है।

नायिका के उरोजों का उरोज देखकर नायक के हृदय में स्वाभाविक ही बड़ी प्रसन्नता होती है। इसीका वर्णन रहीम ने इस दोहे में किया है। रहीम कहते हैं कि --

मनसिज माली को उपज, कही रहीम न जाय।

फल श्यामा के उर लगे, फूल श्याम उर माय॥

यौवन के उद्यान में कामदेव-रूपी माली काम करता है। वह इस वाटिका के सजाने तथा सरस बनाने में बड़ा प्रवीण है। इस वाटिका में वह तरह-तरह के मनोहर तथा उत्तम पदार्थ पैदा करता है। इसकी वाटिका में एक और भी अनोखी बात होती है। फल किसी वृक्ष में लगते हैं और फूल किसी वृक्ष में। इसी हिसाब से फल तो श्यामा के