असनी वाले के छन्द नं. ४,६,७,८ हमारे अष्टक से मिलते हैं और २,३,५ सम्मेलन-पत्रिका वाले से।मदनाष्टक की भाषा तथा भाव में बड़ी शिथिलता है। भाव का कोई क्रम नहीं है और न उनमें पूर्णताही है । हमारे अनुमान से इसका शुद्ध पाठ अबतक मिला नहीं है। मिलने पर यह अवश्य बड़ा मनोरञ्जक प्रतीत होगा।
४ रासपञ्चाध्यायी -- इस पुस्तक का अभी तक कोई पता नहीं चल सका है । सम्भव है कि अस्तित्व होने पर कभी मिल जाय।
५ श्रृंगार सोरठ --कहा जाता है कि रहीम ने सोरठों की एक स्वतंत्र पुस्तक की रचना की है । परन्तु ११ सोरठों के अतिरिक्त,जो इसमें संग्रहीत हैं,और सोरठे पाए नहीं जाते। इनमें भी भिन्न विषय के दोहे हैं । किस आधार पर श्रृंगार सोरठ की पृथक् रचना बताई जाती है हमें मालूम नहीं है । बहुत संभव है कि सोरठों की रचना के संग्रह को ही 'शृंगार सोरठ' नाम-करण कर दिया गया हो । संग्रहीत ११ सोरठों में ३ श्रृंगार सोरठ के बताए जाते हैं, जिनका विवरण उसके नीचे फुटनोट में दे दिया गया है।
६ खेट कौतुक --यह संस्कृत-फारसी मिश्रित भाषा में ज्योतिष की एक पुस्तक है। इसमें कुल १२५ श्लोक हैं जिनमें नवग्रहों के द्वादश स्थानों का फलाफल दिया गया है।