( ४ )
जरद वसन वाला गुलचमन देखता था ।
झुकि-झुकि मतवाला गावता रेखता था ॥
श्रुति बुंग चपलासे कुंडले झूमते थे ।
नयन कर तमासे मस्त है घूमते थे ॥
( ५ )
तरल तरनि सी हैं तीरसी नोकदारैं ।
अमल कमल सी हैं दीर्घ हैं दिल बिदारैं ॥
मधुर मधुप हेरै मान मस्ती न राखैं ।
बिलसित मन मेरे मुन्दरी श्याम आँखैं ॥
( ६ )
भुजंग जुग किधौं है काम कमनैत सोहैं ।
नटवर तब मोहैं बाँकुरी मान भौंहैं ।।
सुन सखि मृदुबानी बेदुरुस्ती अकिल में ।
सरल सरल सानी कै गई सार दिलमें ॥
( ७ )
पकरि परम प्यारे साँवरे को मिलाओ ।
असल अमल प्याला क्यों न मुझको पिलायो ॥
( ८ )
सरद निशि निशीथे चान्द की रोशनाई ।
सधन बन निकुंजे कान्ह बंसी बजाई ।।
रति-पति सुतनिंद्रा साइयाँ छोड़ भागी ।
मदन शिरसि भूयः क्या बला आन लागी ॥
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