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साहित्यिक-जीवन।


जाते हैं। रहीम ने मदनाष्टक नाम रक्खा है। मदन शब्द की विशेषता होनी चाहिए। हमारे अष्टक के प्रत्येक छन्द में यह शब्द भी है। अन्य अष्टकों में इस प्रकार का कोई नियम नहीं है। पाठकों के अवलोकनार्थ हम दोनों अन्य अष्टकों को यहाँ देते हैं। इनमें एक असनी में मिला था और दूसरा सम्मेलन-पत्रिका में प्रकाशित हुआ था।

असनी से प्राप्त हुआ मदनाष्टक।
(१)


दृष्टा तत्रविचित्रतां तरुलतां, मैं था गया बाग में।
कांश्चित् तत्र कुरंगशावनयनी, गुल तोड़ती थी खड़ी॥
उन्नद्भ धनुषा कटाक्षविशिखैः, घायल किया था मुझे।
तत्सोदामि सदैव मोहजलधौ, हे दिल गुज़ारो शुकर॥

(२)


कलित ललित माला वा जवाहिर जड़ा था।
चपल चखन वाला चाँदनी में खड़ा था॥
कटि तट बिच जेला पीत सेला नवेला।
अलि बनि अलबेला यार मेरा अकेला॥

(३)


अलक कुटिल कारी देख दिलदार जुलफैं।
अलि कलित निहारैं आपने दिल की जुलफैं॥
सकल शशि-कला को रोशनी हीन लेखौं।
अइह ब्रजलला को किसतरह फेर देखौं॥