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साहित्यिक-जीवन।

लक्षिता का लक्षण यह है कि जिस नायिका के अंग से उसके प्रिय के प्रति प्रेम-भाव प्रकट होता हो तो उसे खक्षिता कहेंगे। यथा --

होत लखाई सखिन को, जाको पिय सों प्रेम।

ताहि लक्षिता कहत हैं, कवि कोविद करि नेम॥

मतिराम
 

इस पर लक्ष्य रखते हुए यदि हम उपरोक्त उदाहरणों पर विचार करते हैं तो हमारी प्रति का पाठ ही सम्पूर्ण लक्षणों से घटित होता है। आँखों के काजल में किसी प्रकार का परिवर्तन एक अस्वाभाविक बात है। यह बात अवश्य है कि आँखों की स्निग्धता से उसमें ढीलापन आ जाय लेकिन उसकी भाँति में कोई अन्तर नहीं आ सकता। साथ ही आँखों के कोयों का परिवर्तन स्वाभाविक है। चित्त-वृत्ति का उनपर पूरा असर पड़ता है। हृदय की प्रसन्नता से उनको प्रसन्नता होती है, दुःख होने से उनमें शोक प्रकट होता है। ऐसे ही स्नेह से उनमें भी स्निग्धता आ जाती है। इसी से इनमें परिवर्तन दिखाई देना स्वाभाविक है। यों तो ईंच-खींचकर प्रथम छन्द का अर्थ भी लक्षणों के अनुसार, लगाया जा सकता है। परन्तु दूसरे में बहुत कुछ सार है। साथ ही 'कजरा' और 'कोरवा' तथा 'सुदिने' और मूँदिन' में कितना स्वा- भाविक परिवर्तन है। क्रमागत लिखने से भी ऐसी ऐसी भूलें हो सकती हैं।