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रहीम के दोहों ने हमारा ध्यान, जब हम स्कूल में पढ़ते थे, तभी से अपनी ओर आकृष्ट कर लिया था। तदनुमार उसी कालसे इनका संग्रह होरहा था। इस समय हमारे दोहों का नम्बर २५१ के उपरान्त पहुँच चुका था । इधर इनके कई प्रकाशित संग्रह भी हमारे देखने में आए । अपने दोहों का इन दोहों से मिलान करने पर कई ऐसी बात मालूम हुई जिनके कारण इस संग्रह के निकालने की हमें आवश्यकता प्रतीत हुई । अतएव रहीम की अन्य रचनाओं के संग्रह करने का भी प्रयत्न किया गया । यहाँ तक कि काशी नागरी-प्रचारिणी पत्रिका, सम्मेलन पत्रिका, समा- लोचक, माधुरी, सरस्वती आदि से तथा प्राचीन प्रतिलिपियों से भी, जो कुछ हमें मिलसका है, वही आज रहीम-कवितावली के नाम से पाठकों की सेवा में उपस्थित है । हमें आशा है कि यदि हमारे दयालु पाठक इसे एक बार आद्योपान्त पढ़ जाने का कष्ट उठाएंगे तो हमारे अभिप्राय का आभास उन्हें अवश्य मिल जायगा ।
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