है उसी में उन्होंने कई छोटी-छोटी पुस्तकों की रचना कर
डाली जिनके छन्दों की कुल संख्या भी ७०० तक नहीं
पहुँचती। रहीम की रचनाओं का अनुसंधान भी इधर
खूब किया गया है। यदि सतसई का कहीं अस्तित्व होता
तो कम-से-कम पता अवश्य चलता अथवा उसका नाम-
निशान ही कहीं मिलता। यह भी बहुत सम्भव है कि रहीम
ने सतसई के बनाने का प्रयत्न किया हो, पर अनावकाश
अथवा अन्य किसी कारण से सफल न हुए हों।
खैर, कुछ भी हो रहीम के दोहे बहुत अच्छे बन आए हैं। बहुतों में अनूठे भाव हैं। इनके भावों का अनुकरण इनके कई परवर्ती कवियों तक ने किया है। इसका विवरण आगे चलकर हम देंगे। साथ ही इनके कुछ दोहों तथा सोरठों की भाषा तथा भाव दोनों में बड़ी शिथिलता आ गई है। इसमें रहीम का कुछ दोष ठहराया नहीं जा सकता। इनकी कोई प्राचीन हस्त-लिपि मिलने पर यह दोष दूर किया जा सकता है। हमारी समझ में क्रमागत से लि- खते-लिखते इनमें यह दोष पैदा हो गया है। कई दोहों का भाव भी स्पष्ट समझ में नहीं आता। कई जगह रूढ़ि शब्दों का प्रयोग हो गया है।
इनके दोहों में अधिकांश नीति का मसाला है। ऐसे
दोहों की संख्या १८७ के लगभग है। १७ भक्ति और ११
श्रृंगार के दोहे भी हैं। इतर दोहों की संख्या लगभग