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रहीम का परिचय।


रन बन ब्याधि विपत्ति में, डरै न रहिमन रोय।

जो रच्छक जननी जठर, सोहरि गए कि सोइ॥

कितने धैर्य, शान्ति और प्रौढ़-ईश्वर-विश्वास की बात है। यही कारण रहा कि रहीम भारी से भारी मुसीबत पड़ने पर भी अपने कर्म-पथ से ज़रा भी विचलित नहीं हुए।

ये इतने उच्च और उदाराशय के थे कि अपनी तारीफ़ करना तो क्या अपने मुख अपनी कृति का प्रगट करना भी पसन्द न करते थे। हमारी समझ में यह भी एक खास कारण है कि इनकी पुस्तकों की नामावली तक इनकी कविता में कहीं पाना दुर्लभ हो रहा है। इनका नाम और परिचय भी तो इनकी किसी पुस्तक के आदि अन्त में नहीं पाया जाता। ये कहते भी तो हैं कि बड़े लोगों को अपनी बड़ाई स्वयम् करने की आवश्यकता नहीं। हीरा कब कहता है कि मेरा इतना मूल्य है। रत्न-पारखी लोग उसका मूल्य स्वयम् आँक लिया करते हैं।

बड़े बड़ाई ना करैं, बड़े न बोलें बोल।

रहिमन हीरा कब कहैं, लाख टका है मोल॥

कितने उच्चादर्श की बात है। रहीम के सभी गुण अनुकरणीय हैं। अब इस सम्बन्ध में हम अधिक न लिख कर इनके साहित्यिक जीवन का कुछ परिचय देने का यहाँ प्रयत्न करेंगे।