पृष्ठ:रहीम-कवितावली.djvu/११६

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
रहीम के स्फुट संस्कृत-छन्द

____________

आनीता नटवन्मया तव पुरः श्रीकृष्ण याः भूमिकाः ।

व्योमाकाशखखांबराब्धि वसुवत् त्वत्प्रीतयेद्यावधि ॥

प्रीतस्त्वं यदि चेन्निरीक्ष्य भगवन् मत्प्रार्थितं देहि मे।

नोचेन्मानय मानयेति च पुनर्मामीदृशीर्भूमिकाः॥१॥

हे श्रीकृष्ण,तुम्हें प्रसन्न करने के लिए भट की तरह मैंने अब तक चौरासी लाख भिन्न-भिन्न स्वरूप तुम्हारे सामने उपस्थित किए । अब नानाविध अभिनयों को देख कर यदि आप प्रसन्न हों,तो जो माँगूँ,दे डालिए । यदि नहीं,तो कहदो कि फिर कभी ऐसे अभिनय मत करो।

रत्नाकरोस्ति सदनं गृहिणी च पद्मा ।

किं देयमस्ति भवते जगदीश्वराय ॥

राधागृहीत मनसे मनसे च तुभ्यम् ।

दत्तं मया निज मनस्तदिदं गृहाण ॥२॥

हे जगदीश्वर, रत्नाकर सरीखे अक्षय रत्न कोष में आपका स्थान है और लक्ष्मी आपकी गृहिणी है । तो फिर बताइए कि आपके लिए अब क्या वस्तु देने योग्य रह गई। हाँ,आपका मन आपके पास नहीं है -- अर्थात् राधिकाजी ने आपके मन को चुरा लिया है इस प्रकार आप आजकल- मन-विहीन हो गए हैं -- वही मैं आपको देता हूँ। इसे स्वीकार करिए।