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श्लोक
- यत्पादपङ्कजरेणोः प्रसादमासाद्य सर्वभुवनेषु।
- प्रणमामीष्टसुमूर्ति तामहममराः प्रभुत्वतां यान्ति ॥१॥
जिनके चरण कमल-धूलि के प्रसाद से देवता सम्पूर्ण लोकों में बड़ाई पाते हैं, उन अपने इष्टदेव कृष्णचन्द्र को मैं प्रणाम करता हूँ ॥ १ ॥
- कमर्विलाधशालए नरोहि बामुरौवतः।
- सदाबली च साबिरः सुकर्मकृद्यदा भवेत् ॥२॥
जिसकी कुण्डली के तीसरे स्थान में चन्द्रमा हो वह मनुष्य सन्तोषी,शीलवान्,बली और अच्छे कामों का करनेवाला होता है ॥२॥
- मुश्तरी यदि भवेद् ज़रखाने,
- बुज़रुगः परमपुण्यमतिः स्यात् ।
- कामिल: कनकसूनुयुतश्च,
- खूबरोहि मनुजो ज़रदारः ॥ ३॥
- मुश्तरी यदि भवेद् ज़रखाने,
- इस पुस्तक के पाँच श्लोक नमूने के तौर पर दिए गए हैं । यह प्राप्य है और प्रकाशित भी हो चुकी है।