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खानखाना-कृत बरवै।

लखि मोहन की बंसी,बड़ सी जान ।

लागत मधुर प्रथम पै,बेधत प्रान ॥

काह कान्ह ते कहनो,सब जग साखि ।

कौन होत काहू के,कुबरी राखि ॥

लोग लुगाई हिलिमिलि,खेलत फाग ।

परयो उड़ावन मोको,सब दिन काग ॥

आखिन देखत सब ही,कहत सुधारि ।

पै जग साँची प्रीति न,चातक टारि ॥

मैं गुज़र दई दिलरा,बे दिलदार ।

इक-इक साअनहुम चूं,साल हज़ार ॥

गरकिज़ मैं शुद आलम,चन्द हज़ार ।

बे दिलवर के गीरद,दिल मक़रार ॥

दिलवर जहतर जिगरम,तीर निगाह ।

तपीअ ज्यों में आयद,हर दम आह ।

के गोयम अह वालम,पैश निगार ।

तनहा बजरन अायद,दिल लाचार ॥

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यह पुस्तक भी अपूर्ण है । देखो भूमिका माग ।