पृष्ठ:रहीम-कवितावली.djvu/१०५

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
५४
रहीम-कवितावली।
[ ५ ]

हिम ऋतु रतिधामा सेज लोटौं अकेली ।

उठत बिरह ज्वाला क्यों सहौं री सहेली ।।

चकित नयन बाला तत्र निद्रा न लागी ।

मदन शिरसि भूयः क्या बला आन लागी ॥

[ ६ ]

कमल मुकुल मध्ये राति को ऐ सयानी ।

लखि मधुकर बंधम् तू भई री दिवानी ।।

तदुपरि मधुकाले कोकिला देखि भागी ।

मदन शिरसि भूयः क्या बला आन लागी ।।

[ ७ ]

तव बदन मयंकी ब्रह्म की चोप बाढ़ी ।

मुख कवँ लखि भू चाँद ते कांति गाढ़ी ॥

मदन-मथित रंभा देखतै मोहि भागी ।

मदन शिरसि भूयः क्या बला आन लागी ॥

[ ८ ]

नभसि घन घनान्ते है घनी कैसि छाया ।

पथिक जन बधूनाम् जन्म केता गँवाया ॥

इति बदति पठानी मन्मथांगी विरागी ।

मदन शिरसि भूयः क्या बला आन लागी ॥

______