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रहीम-कवितावली।
[ ५ ]
हिम ऋतु रतिधामा सेज लोटौं अकेली ।
उठत बिरह ज्वाला क्यों सहौं री सहेली ।।
चकित नयन बाला तत्र निद्रा न लागी ।
मदन शिरसि भूयः क्या बला आन लागी ॥
[ ६ ]
कमल मुकुल मध्ये राति को ऐ सयानी ।
लखि मधुकर बंधम् तू भई री दिवानी ।।
तदुपरि मधुकाले कोकिला देखि भागी ।
मदन शिरसि भूयः क्या बला आन लागी ।।
[ ७ ]
तव बदन मयंकी ब्रह्म की चोप बाढ़ी ।
मुख कवँ लखि भू चाँद ते कांति गाढ़ी ॥
मदन-मथित रंभा देखतै मोहि भागी ।
मदन शिरसि भूयः क्या बला आन लागी ॥
[ ८ ]
नभसि घन घनान्ते है घनी कैसि छाया ।
पथिक जन बधूनाम् जन्म केता गँवाया ॥
इति बदति पठानी मन्मथांगी विरागी ।
मदन शिरसि भूयः क्या बला आन लागी ॥
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