पृष्ठ:रहीम-कवितावली.djvu/१०३

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५२ रहीम-कवितावली । जहवाँ जगे रइनियाँ, तहवाँ जाउ। जोरि नयन निरलजवा, कत मुसकाउ ॥ ११०॥ . - छूट्यो लाज गरिअवा, श्री कुल-कानि । करत रोज अपरधवा, परि गइ बानि ॥ १११ ॥ पुनः चतुर्विध नायक । क्रिया-चतुर नायक- खेलत जानिसि टोलियो, नन्द किसोर । छुइ बृषभानु-कुँअरिआ, होइगो चोर ॥ ११२ ॥ वचन-चतुर नायक- सघन . कुंज अमरैया, सीतल छाँहि । झगरति आइ कोइलिया, फिरि उड़ि जाहि ॥११३॥ मानी-नायक- अब न जनम भरि सखिश्रा, ताकौं ओहि । ऐंठत गो अभिमनवा, तजि कै मोहि ॥ ११४ ॥ प्रोषित-नायक- करिब ऊँचि अटरिश्रा, तिथ सँग केलि । कबधों पहिरि गजरवा, हार चमेलि ॥ ११५ ॥ ___इति बरवै नायिका-भेद समाप्त ॥ ११२-१-अपने टोले में।