ब्रजभाषा और खड़ी बोली ] ६८ ['हरिऔध' की हैं और ये कविताएँ उसी भाषा की मानी गयी हैं, जिस भाषा में वे लिखी गई हैं। मैं हिन्दी-संसार के कवि-शिरोमणि गोस्वामी तुलसीदास, वंग भाषा के महाकवि भारतचन्द्र और उर्दू भाषा के मलिकुश्शोअरा मिर्जा गालिब को एक-एक कविता प्रमाणस्वरूप नीचे लिखता हूँ, आप लोग उसे देखें- गोपाल-गोकुल-वल्लभी प्रिय गोप-गोसुत-वल्लभं । चरणारविन्दमहं भजे भजनीय सुर-नर-दुलभं ॥ सिर केकि पच्छ विलोल कुण्डल अरुन बनरुह लोचनं । गुञ्जावतंस विचित्र सब अँग धातु भव भय मोचनं ।। कच कुटिल सुन्दर तिलक भ्र राका मयंक समाननं । अपहरत तुलसीदास त्रास विहार वृन्दा कान। -तुलसीदास जय चामुण्डे जय चामुण्डे कर कलितासि वरामय मुण्डे । कल-कल रसने,कड़ मड़ दशने,रण भुवि खण्डित सुर रिपुमुण्डे । अट अट हासे कट मट भाषे नखर बिदारित रिपु करि शुण्डे । कलिमल मथनम् हरिगुण कथनम् विरचय भारत कविवर तुण्डे । -भारतचन्द्र शुमारे सबहा मरगूबे बुते मुशकिल पसंद आया । तमाशा ये वयक कफ बुरदने सद् दिल पसंद आया ।। हवाये सबज गुल आईनये बेमेहरिये क़ातिल । कि अन्दाज़ बखू ग़लतीदने क़ातिल पसंद आया ।। ___-मिजो ग़ालिब गोस्वामीजी के इस प्रकार के पद्य सैकड़ों है, विनयपत्रिका का लगभग एक तृतीयांश ऐसे ही पद्यों से पूर्ण है। प्राचार्य केशव की रचना में इस
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