हिन्दी भाषा का विकास ] ८६ . [ 'हरिऔध' छोही सी छली सी छीन लीनी सी छकी सी छिन, जकी सी टकी सी लगी थकी थहरानी सी। बींधी सी बँधी सी बिस्त्र बूड़ति विमोहित सी, बैठी बाल बकति विलोकति बिकानी सी ।। हिन्दी-विकास का यह प्रसंग अधूरा रह जायगा, यदि गुरुदेवों की गौरवमयी रचनाओं की गुरुता का गान इसमें न हो । महात्मा गुरु नानक से लेकर कलगीधर गुरु गोविन्द सिंह तक दसों गुरुत्रों ने हिन्दू जाति को गौरवित बनाने का ही भगीरथ प्रयत्न नहीं किया है, उन स्वर्गीय महापुरुषों ने हिन्दीदेवी की भी वह सेवा की है कि जिसके विषय में यह निर्भय होकर कहा जा सकता है 'न भूतो न भविष्यति ।' यदि वन्दनीय वल्लभ-सम्प्रदाय अथवा पूजनीय वैष्णव दल ने उसको समुन्नति के शिखर पर पहुंचा दिया है, यदि समादरणीय सन्तमतवालों ने उसकी प्रथित प्रतिष्ठा-पताका बहुत ऊँची कर दी है, तो सकलं गौरव-भाजन गुरुदेवों ने उसकी कान्ति-कीर्ति-कौमुदी द्वारा समस्त दिशात्रों को धवलित कर दिया है । वास्तव बात यह है कि एक हिन्दीदेवी ही ऐसी हैं जो अविरोध से सभी सम्प्रदाय और मतवालों की आराध्या हैं । पवित्र आदि ग्रन्थ साहब और दशम गुरु प्रणीत दशम ग्रंथ साहब हिन्दी भाषा की पुनीत, महान् और भावमयी रचनाओं के अपार पारावार हैं। जहाँ तक मैं जानता हूँ, हिन्दी में आज तक किसी ग्रन्थकार ने इतना बड़ा ग्रंथ नहीं रचा। इन दोनों पुनीत ग्रन्थों में क्या नहीं है ? वे विज्ञान के भाण्डार, विवेक वारिधि, विचार के हिमाचल, भाव के सुमेरु और भक्ति के श्राकार हैं । गुरु नानक- देव के शब्द पंजाबी भाषामिश्रित हैं; किन्तु गुरु अर्जुनदेव की रचना अधिकांश शुद्ध हिन्दी है। दशम ग्रन्थ साहब की अधिकांश कविताएँ ब्रजभाषा में हैं और उसमें उसका उच्च और परिमार्जित स्वरूप वर्तमान है । आदि ग्रंथ साहब में से दो दोहे और दशम ग्रंथ साहब में से एक पद्य नीचे लिखा जाता है-
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