हिन्दी भाषा की जननी कौन है? उसकी जन्मभूमि कहाँ है? वह वहाँ कैसे उत्पन्न हुई, कैसे लालित-पालित हुई? उसका उगना, अंकुरित होना, पल्लवित बनना, फूलना-फलना अत्यन्त मनोमुग्धकर है। परम ललित लेखनी द्वारा ये बातें लिपिबद्ध हुई हैं, बड़े सुचतुर चित्रकारों ने अपनी चारु तूलिका-द्वारा उसका रुचिर चरित्र-चित्र अंकित किया हैं।
हिन्दी भाषा का वर्तमान रूप अनेक परिवर्तनों का परिणाम है। वह क्रम-क्रम विकसित होकर इस अवस्था को प्राप्त हुई है। यह क्रम-विकास कैसे हुआ, उसका निरूपण यहाँ किया जाता है। प्रथम सिद्धान्त यह है कि हिन्दी भाषा की जननी संस्कृत है। पहले वह कई प्राकृतों में परिवर्तित हुई, उसके उपरान्त उसने हिन्दी का वर्तमान रूप धारण किया। दूसरा यह कि प्राकृत स्वयं एक स्वतन्त्र भाषा है। वह न तो वैदिक भाषा से उत्पन्न हुई, न संस्कृत से। कालान्तर में वही रूप बदलकर पायी और हिन्दी कहलायी। तीसरा यह कि प्राचीन वैदिक भाषा ही वह उद्गम स्थान है, जहाँ से समस्त प्राकृत भाषाओं के स्रोत प्रवाहित हुए हैं।