कविवर भारतेन्दु उन्नीसवीं शताब्दी का उत्तरार्द्ध ऐसा काल है जिसमें बहुत बड़े-बड़े परिवर्तन हुए। परिवर्तन क्यों उपस्थित होते हैं, इस विषय में कुछ अधिक लिखने की आवश्यकता नहीं। किन्तु मैं यह बतलाऊँगा कि उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में राजनीतिक, धार्मिक और सामाजिक अवस्था क्या थी। मुसलमानों के राज्य का अन्त हो चुका था और ब्रिटिश राज्य का प्रभाव दिन-दिन विस्तार-लाभ कर रहा था। अँगरेजी शिक्षा के साथ साथ योरोपीय भावों का प्रचार हो रहा था और यथा राजा तथा प्रजा' सिद्धान्त के अनुसार भारतीय रहन-सहन-प्रणाली भी परिवर्तित हो चली थी। अँगरेजों का जातीय भाव बड़ा प्रबल है। उनमें देशप्रेम की लगन भी उच्चकोटि की है। विचार स्वातंत्र्य उनका प्रधान गुण है। कार्य को प्रारम्भ कर उसको दृढ़ता के साथ पूर्ण करना और उसे बिना समाप्त किये न छोड़ना यह उनका जीवन-व्रत है । उनके समाज में स्त्री जाति का उचित आदर है, साथ ही पुरुषों के समान उनका स्वत्व भी स्वीकृत है। ब्रिटिश राज्य के संसर्ग से और अँगरेजी भाषा की शिक्षा पाकर ये सब बातें, और इनसे सम्बन्ध रखनेवाले और अनेक भाव इस शताब्दी के उत्तराद्ध में और प्रान्तों के साथ-साथ हमारे प्रान्त में
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