पृष्ठ:रस साहित्य और समीक्षायें.djvu/२५

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
( २६ )

वली की अच्छी छटा रहती है। सच्चे कवि की भाँति गद्य लिखते समय भी उनकी भावुकता उन्हें झंकारपूर्ण कोमल कांत शब्दों का प्रयोग करने के लिये प्रेरित करती है।

उपाध्याय जी की संस्कृत गद्य शैली में जो सौष्ठव तथा जो विशदता है उसका श्रेय उनके काव्य कौशल को है। क्योंकि वे कवि पहले हैं और गद्य-लेखक उसके बाद। तभी उनकी भाषा में शैथिल्य नहीं है।

एक बात और है। "ठेठ" वाली भाषा को एक विशेष प्रकार के सोद्देश्य गद्य का उदाहरण मानकर अलग रखिये और उनके साधारण प्रकार के गद्य पर विचार कीजिये तो ज्ञात होगा कि उसमें गम्भीरता है, हास्य और व्यंग्य उनकी प्रकृति के विरुद्ध है। इसी दृष्टि से पं० अयोध्यासिंह जी को संस्कृत शैली के गद्य-लेखकों में रखना चाहिये।

---रमाकान्त त्रिपाठी

'साहित्यरत्न' पं० अयोध्यासिंह उपाध्याय कैसे काव्यकला-कुशल, शब्द-शिल्पी, सत्कवि और सुलेखक हैं---यह हिन्दी-संसार विशेष रूप से जानता है। आपका पाण्डित्य प्रगाढ़, बुद्धि तीक्ष्ण, विचार उत्तम, कवित्व-शक्ति निस्सीम और प्रतिभा अप्रतिहत है। हिन्दी तो आपकी अनुगत-सी ज्ञात होती है। आप उसे जिस साँचे में ढालना चाहते हैं ढाल देते हैं। कोई भी मर्मज्ञ पाठक हिन्दी-संसार में नवयुग के प्रवर्तक और नयी-नयी सृष्टि के स्रष्टा उक्त उपाध्याय जी के 'ठेठ हिन्दी का ठाठ' और 'अधखिला फूल' से सरस और शिक्षाप्रद उपन्यास, 'प्रियप्रवास' सा महाकाव्य और इन ग्रंथों की तथा उपाध्याय जी की संकलित 'कबीर वचनावली' की विवेक और पाण्डित्यपूर्ण शत-शत पृष्ठ से भी अधिक भूमिका पढ़ कर मेरी इन उक्तियों को अत्युक्तियों में परिणत नहीं करेगा। आपकी प्रशंसा मुक्त कंठ से, क्या देशी और क्या विदेशी, सभी साहित्य-सेवियों ने की है। आपकी गणना महाकवियों में होती है।'

---रामदहिन मिश्र