यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
. कविवर देव] २४६ [ 'हरिऔध' संपति ते बिपति बिपति हूँ ते संपति है ___संपति औ बिपति बराबरि कै गुनियाँ । संपति मैं काय काय विपति में भाँय भाँय ___काय काय भाँय भाँय देखी सब दुनियाँ। (१०) आयी बरसाने ते बुलाई बृषभानु सुता निरखि प्रभानि प्रभा भानुकी अथै गयी। चक चकवान के चकाये चक चोटन सों चौंकत चकोर चकचौंधी सी चकै गयी। देव नँद नन्दन के नैनन अवन्दमयी नन्द जू के मन्दरनि चन्दमयी है गयी। कंजन कलिनमयी कुजन नलिनमयी __गोकुल की गलिन अलिनमयो के गयी। (११) औचक अगाध सिंधु स्याही को उमडि आयो तामें तीनो लोक बूड़ि गये एक संग मैं । कारे कारे आखर लिखे जु कारे कागर सुन्यारे करि बाँचै कौन जाँचै चित भंग मैं। आँखिन मैं तिमिर अमावस की रैनि जिमि ___जम्बु जल बुद जमुना जल तरंग में । यों ही मन मेरो मेरे काम को न रहो माई स्याम रंग है करि समायो स्याम रङ्ग मैं।