कविवर देव ] २४५ [ 'हरिऔध' में लोक-मंगल की कामना और उपयोगिता कितनी है। उसका काव्य कौन-सा संदेश देता है और उसकी उपयुक्तता किस कोटि की है। बिना इन सब बातों पर विचार किये कुछ थोड़े-से पद्यों को लेकर किसी का महत्व प्रतिपादन युक्तिसंगत नहीं । अतएव मैं यह मीमांसा करने के लिए प्रस्तुत नहीं हूँ कि जो हिन्दी-संसार के महाकवि हैं उनमें से किससे देव बड़े हैं और किससे छोटे । प्रत्येक विषय में प्रत्येक को महत्व प्राप्त नहीं होता और न सभी विषयों में सबको उत्कर्ष मिलता है । अपने-अपने स्थान पर सब आदरणीय हैं, और भगवती वीणा-पाणि के सभी वर पुत्र हैं । कविवर सूरदास और गोस्वामी तुलसीदास क्षणजन्मा पुरुष हैं। उनको वह उच्चपद प्राप्त है जिसके विषय में किसी को तर्क-वितर्क नहीं। इसलिए मैंने जो कुछ इस समय मथन किया है, उससे उनका कोई सम्बन्ध नहीं। अब मैं श्राप लोगों के सामने देवजी की कुछ रचनाएँ उपस्थित. करता हूँ। आप उनको अवलोकन करें और यह विचारें कि उनकी कविता किस कोटि की है और उसमें कितना कवि-कर्म है:- (१) पाँयन नूपुर मंजु बजै कटि । किंकिनि मैं धुनि की मधुराई । साँवरे अंग लसै पट पीत हिये। हुलसै बनमाल सुहाई। माथे किरीट बड़े हग चंचल मंद हँसी मुखचन्द जुन्हाई। जै जग मंदिर दीपक सुन्दर श्री ब्रज दूलह देव सहाई।
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