कविवर बिहारीलाल ] २३८ [ 'हरिऔध' अपने क्षेत्र में अपना कार्य करके कितनी सफलता लाभ की। कवि की अालोचना करते हुए उसके दार्शनिक और तत्वज्ञ न होने का राग अलापना बुद्धिमत्ता नहीं । ऐसा करना प्रमाद है, विवेक नहीं । मेरा विचार है कि बिहारीलाल ने अपने क्षेत्र में जो कार्य किया है वह उल्लेखनीय है एवं प्रशंसनीय भी। यदि उसमें कुछ दुर्बलताएँ हैं तो वे उनकी विशेषताओं के सम्मुख मार्जनीय हैं, क्योंकि यह स्वाभाविकता है। इससे कौन बचा १ . ___ बिहारीलाल की भाषा के विषय में मुझे यह कहना है कि वह साहित्यिक ब्रजभाषा है। उसमें अवधी के 'दीन', 'कीन', इत्यादि, बुन्देलखण्डी के लखबी और प्राकृत के मित्त ऐसे शब्द भी मिलते हैं । परन्तु उनकी संख्या नितान्त अल्प है। ऐसे ही भाषागत और भी कुछ थैदोष उनमें मिलते हैं, किन्तु उनके महान भाषाधिकार के सामने वे सब नगण्य हैं। वास्तव बात यह है कि उन्होंने अपने ७०० दोहों में क्या भाषा और क्या भाव, क्या सौंदर्य, क्या लालित्य सभी विचार से वह कौशल और प्रतिभा दिखलायी है कि उस समय तक उनका ग्रंथ समादर के हाथों से गृहीत होता रहेगा जब तक हिन्दी भाषा जीवित रहेगी। ____ बिहारीलाल के सम्बंध में डाक्टर जी. ए. ग्रियर्सन की सम्मति नीचे लिखी जाती है:- ___“इस दुरूह ग्रंथ (बिहारी सतसई ) में काव्य-गत परिमार्जन, माधुर्य और अभिव्यक्ति-सम्बंधी विदग्धता जिस रूप में पायी जाती है वह अन्य कवियों के लिए दुर्लभ है। अनेक अन्य कवियों ने उनका अनुकरण किया है, लेकिन इस विचित्र शैली में यदि किसी ने उल्लेख-योग्य सफलता पायी है तो वह तुलसीदास हैं, जिन्होंने बिहारी लाल के पहले सन् १५८५ में एक सतसई लिखी थी। बिहारी के इस
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