कविवर केशवदास ] २२८ [ 'हरिऔध' अखिल भुवन भर्ता ब्रह्म रूद्रादि कर्ता । थिरचर अभिरामी कीय जामातु नामी । - संस्कृत वृत्तों का व्यवहार सबसे पहले चन्दबरदाई ने किया है । उनका वह छन्द यह है:- "हरित कनक कांति कापि चपेव गौरा । रसित पदुम गंधा फुल्ल राजीव नेत्रा । उरज जलज शोभा नामि कोर्ष सरोजं । चरण-कमल हस्ती, लीलया राजहंसी ॥ इसके बाद गोस्वामीजी को संस्कृत छन्दों में संस्कृतगर्भित रचना करते देखा जाता है। विनयपत्रिका का पूर्वाद्ध तो संस्कृत-गर्भित रच- नाओं से भरा हुआ है। गोस्वामीजी के अनुकरण से अथवा अपने संस्कृत-साहित्य के प्रेम के कारण, केशवदासजी को भी संस्कृत गर्भित रचना संस्कृत वृत्तों में करते देखते हैं। इनके भी कोई-कोई पद्य ऐसे हैं जिनको लगभग संस्कृत का ही कह सकते हैं । इन्होंने ३०० वर्ष पहले भिन्न तुकान्त छन्दं की नींव भी डाली, और वे ऐसा संस्कृत वृत्तों के अनुकरण से ही कर सके।
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