कविवर केशवदास ] २२७ . ['हरिऔधर भरा पड़ा है। कोई पृष्ठ इस ग्रन्थ का शायद ही ऐसा होगा कि जिसमें इस प्रकार के पद्य न हों। दो अर्थवाला पद्य आपने देखा, उसमें कितना विस्तार है। तीन-तीन, चार-चार अर्थ- वाले पद्य कितने विचित्र होंगे उनका अनुभव आप इस पद्य से ही कर सकते हैं। मैं उन : पद्यों में से भी कुछ पद्य आप लोगों के सामने रख सकता था। परन्तु उसकी लम्बी-चौड़ी व्याख्या से आप लोग तो घबरायेंगे ही, मैं भी घबराता हूँ। इसलिए उनको छोड़ता हूँ। केशवंदासजी के पांडित्य के समर्थक सब हिन्दी-साहित्य के मर्मज्ञ हैं। इस दृष्टि से भी मुझे इस विषय का त्याग करना पड़ता है।
- केशवदासजी का प्रकृति-वर्णन कैसा है, इसके लिए मैं आप लोगों
से उधृत पद्यों में से प्रकृति की सुरम्यता को विशेष ध्यानपूर्वक अवलोकन करने का अनुरोध करता हूँ। इन पद्यों में जहाँ स्वाभाविकता है, वहाँ गम्भीरता भी है । कोई-कोई पद्य बड़े स्वाभाविक हैं और किसी-किसी पद्य का चित्रण इतना अपूर्व है कि वह अपने चित्रों को आँख के सामने. ला देता है। . , . . 'रामचन्द्रिका' अनेक प्रकार के छन्दों के लिए भी प्रसिद्ध है। इतने छन्दों में आज तक हिन्दी भाषा का कोई अन्य नहीं लिखा गया । नाना प्रकार के हिन्दी के छन्द तो इस ग्रन्थ में हैं ही। केशवदासजी ने इसमें कई संस्कृत वृत्तों को भी लिखा है। संस्कृत वृत्तों की भाषा भी अधिकांश संस्कृत गर्भित है, वरन् उसको एक प्रकार से संस्कृत की ही रचना कही जा सकती है। उद्धृत पद्यों में से बारहवाँ पद्य इसका प्रमाण है। भिन्न तुकान्त छन्दों की रचना का हिन्दी-साहित्य में अभाव है। परन्तु केशवदासजी ने रामचन्द्रिका में इस प्रकार का एक छन्द भी लिखा है, जो यह है:- गुणगण मणिमाला चित्त चातुर्य्य शाला । जनक सुखद गीता पुत्रिका पाय सीता ।