कविवर केशवदास ] २१७ [ 'हरिऔध २-किधौं मुख कमल ये कमला की ज्योति होति, किधौं चारु मुखचन्द्र चन्द्रिका चुराई है। किधौं मृगलोचन मरीचिका मरीचि केघौं, रूप की रुचिर रुचि सुचि सों दुराई है। सौरभ की सोभा की दलन घन दामिनी की, केशव चतुर चित ही की चतुराई है। एरी गोरी भोरी तेरी थोरी थोरी हाँसी मेरे, मोहन की मोहिनी की गिरा की गुराई है। ४-विधि के समान हैं बिमानी कृत राजहंस, बिबुध बिबुध जुत मेरु सो अचल है। दीपत दिपत अति सातो दीप दीपियत, दूसरो दिलीप सो सुदक्षिणा को बल हैं। सागर उजागर को बहु बाहिनी को पति, छनदान प्रिय किधौं सूरज अमल है। सब विधि समरथ राजै राजा दशरथ, भगीरथ पथ गामी गंगा कैसो जल है। ५-तरु तालीस तमाल ताल हिंताल मनोहर । मंजुल बंजुल लकुच बकुल कुल कर नारियर । एला ललित लवंग संग पुंगीफल सोहै। सारी शुक कुल कलित चित्त कोकिल अलि मोहै । शुभ राजहंस कलहंस कुल नाचत मत्त मयूर गन । अति प्रफुलित फलित सदा रहै केशवदास विचित्र बन ।
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