कविवर केशवदास ] २१५ .. [ 'हरिऔध' पाण्डित्य-प्रदर्शन के लिए हुई है और मैं यह दृढ़ता से कहता हूँ कि हिन्दी-संसार में कोई प्रबन्ध-काव्य इतना पाण्डित्यपूर्ण नहीं है। मैं पहले कह चुका हूँ कि वे संस्कृत के पूर्ण विद्वान् थे। उनके सामने शिशु- पाल-वध और 'नैषध' का आदर्श था। वे उसी प्रकार का काव्य हिन्दी में निर्माण करने के उत्सुक थे। इसीलिए रामचन्द्रिका अधिक गूढ़ है। साहित्य के लिए सब प्रकार के ग्रन्थों की आवश्यकता होती है। यथा- स्थान सरलता और गूढता दोनों वांछनीय हैं । यदि लघुत्रयी आदरणीय है तो वृहत्रयी भी। रघुवंश को यदि आदर की दृष्टि से देखा जाता है तो नैषध को भी। यद्यपि दोनों की रचना-प्रणाली में बहुत अधिक अन्तर है। प्रथम यदि मधुर भाव-व्यञ्जना के लिए आदरणीय है तो द्वितीय अपनी गम्भीरता के लिए। शेक्सपियर और मिल्टन की रचनात्रों के सम्बन्ध में भी यही बात कही जा सकती है। केशवदासजी यदि चाहते तो 'कविप्रिया' और 'रसिकप्रिया की प्रणाली ही रामचन्द्रिका में भी ग्रहण कर सकते थे । परन्तु उनको यह इष्ट था कि उनकी एक ऐसी रचना भी हो जिसमें गम्भीरता हो और जो पाण्डित्याभिमानी को भी पाण्डित्य-प्रकाश का अवसर दे, अथच उसकी विद्वत्ता को अपनी गम्भीरता की कसौटी पर कस सके। इस बात को हिन्दी के विद्वानों ने भी स्वीकार किया है। प्रसिद्ध कहावत है-'कवि को दीन न चहै बिदाई। पूछ केशव की कविताई ।' एक दूसरे कविता-मर्मज्ञ कहते हैं:- उत्तम पद कवि गंग को, कविता को बलबीर । केशव अर्थ गंभीरता, सूर तीन गुन धीर ।। __ इन बातों पर दृष्टि रखकर रामचन्द्रिका की गम्भीरता इस योग्य नहीं कि उस पर कटाक्ष किया जाय । जिस उद्देश्य से यह ग्रंथ लिखा गया है, मैं समझता हूँ, उसकी पूर्ति इस ग्रंथ द्वारा होती है । इस ग्रंथ
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