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कविवर केशवदास हिन्दी-संसार ने सूरदासजी और गोस्वामीजी के बाद का स्थान कविवर केशवदासजी को ही दिया है । मैं भी इसी विचार का हूँ। उनको 'उडुगन' कहा गया हैं । यदि वे उडुगन हैं तो प्रभात कालिक शुक्र ( कवि ) के समान प्रभा-विकीर्णकारी हैं। कविकर्म शिपी पूर्ण ज्योति रीति काल के प्रभात काल में केशवदासजी से ही हिन्दी-संसार को मिली। सब बातों पर विचार करने से यह स्वीकार करना पड़ता है कि साहित्य सम्बन्धी समस्त अंगों की पूर्ति पहले पहल केशवदासजी ने ही की। इनके पहले कुछ विद्वानों ने रीति-ग्रन्थों की रचना का सूत्रपात किया था, किन्तु यह कार्य केशवदासजी की प्रतिभा से ही पूर्णता को प्राप्त हुना। इतिहास बतलाता है कि आदि में कृपाराम ने ही 'हिततरंगिणी' नामक रस-ग्रन्थ की रचना की। इनका काल सोलहवीं शताब्दी का पूर्वार्द्ध है। इन्होंने अपने ग्रन्थ में अपने समय के पहले के कुछ सुकवियों की कुछ रचनाओं की भी चर्चा की हैं । किन्तु वे ग्रन्थ अप्राप्य हैं । ग्रन्थकारों के नाम तक का पता नहीं मिलता। इन्हीं के समसामयिक गोप नामक कवि और मोहनलाल मिश्र थे। इनमें से गोप नामक कवि ने, रामभूषण और अलंकार-चन्द्रिका नामक ग्रन्थों की रचना की