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गोस्वामी तुलसीदास ] २०१ I'हरिऔध' भी वे निपुण थे। नीचे के पद्यों को पढ़कर आप यह समझ सकेंगे कि भाषा पर उनका कितना अधिकार था । वास्तव में भाषा उनकी अनुचरी ज्ञात होती है। वे उसे जब जिस ढंग में ढालना चाहते हैं ढाल देते हैं:- ४-बर दंत की पंगति कुंद कली अधराधर पल्लव खोलन की। चपला चमकै घन बीच जगै छवि मोतिन माल अमोलन की। धुंघरारी लटें लटक मुख ऊपर कुण्डल लोल कपोलन को। निवछावर प्रान करै तुलसी बलि जाउँ लला इन बोलन काार ५-हाट बाट कोट पोट अटनि अगार पौरि खोरि खोरि दौरि दौरि दीन्हों अति आगि है। भारत पुकारत सँभारत न कोऊ काहु व्याकुल जहाँ सो तहाँ लोक चल्यो भागि है। पालधी फिरावै बार बार झहरावै मरें बूंदियाँ-सी लंक पधिराई पाग पागि है। तुलसी बिलोक अकुलानी नातुधानी कहैं। चित्रहू के कपि सों निसाचर न लागि है। -कवितावली