गोस्वामी तुलसीदास ] १६४ [ 'हरिऔध' पाया जाता है और अतीव प्राञ्जलता के साथ । काव्य और साहित्य का कोई उत्तम विषय ऐसा नहीं कि जिसका दर्शन इस ग्रन्थ में न होता हो । यह ग्रन्थ सरसता, मधुरता और मनोभावों के चित्रण में जैसा अभूतपूर्व है वैसा ही उपयोगिता में भी अपना उच्च स्थान रखता है। यही कारण है कि तीन सौ वर्षों से वह हिन्दू समाज, विशेषकर उत्तरी भारत का आदर्श ग्रन्थ है। जिस समय मुसलमानों का अव्याहत प्रताप था, शास्त्रों के मनन , चिन्तन का मार्ग धीरे-धीरे बन्द हो रहा था, संस्कृत की शिक्षा दुर्लभतर हो रही थी और हिन्दू-समाज के लिए सच्चा उपदेशक दुष्प्राप्य था, उस समय इस महान् ग्रन्थ का प्रकाश ही उस अन्धकार का नाश कर रहा था जो अज्ञात-रूप में हिन्दुओं के चारो ओर व्याप्त था। आज भी उत्तर भारत के गाँव-गाँव में हिन्द शास्त्र की प्रमाण-कोटि में रामायण की चौपाइयाँ गृहीत हैं । प्रायः अंग्रेज विद्वानों ने लिखा है कि योरोप में जो प्रतिष्ठा बाइबिल (Bible) को प्राप्त है, भारतवर्ष में वह गौरव यदि किसी ग्रन्थ को मिला तो वह रामचरितमानस को ही। एक साधारण कुटी से लेकर राजमहलों तक में यदि किसी ग्रन्थ की पूजा होती है तो वह रामायण की ही। उसका श्रवण, मनन और गान सबसे अधिक अब भी होता है। व्याख्याता अपने व्याख्यानों में रामायण की चौपाइयों का आधार लेकर जनता पर प्रभाव डालने में आज भी अधिक सतर्क होता है। वास्तव बात तो यह है कि अाज दिन जो महत्व इस ग्रन्थ को प्राप्त है वह किसी महान् से महान् संस्कृत ग्रंथ को भी नहीं। इन बातों पर दृष्टि रख कर जब विचार करते हैं तो यह ज्ञात होता है कि गोस्वामीजी हिन्दी-साहित्य के सर्वमान्य कवि ही नहीं है, हिन्दू-संसार के सर्वपूज्य महात्मा हैं। ___ मैं पहले कविवर सूरदासजी के विषय में अपनी सम्मति प्रकट कर चुका हूँ और अब भी यह मुक्त कंठ से कहता हूँ कि सूरदासजी ने जिस विषय पर लेखनी चलायी है, उसमें उनकी समकक्षता करनेवाला
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