गोस्वामी तुलसीदास ] १८६ [ 'हरिऔध' मार्ग कहते हैं । अवस्था विशेष के लिए ही यह मार्ग निर्दिष्ट है, परन्तु इसका यह अर्थ नहीं कि प्रवृत्ति-मार्ग की उपेक्षा कर अनधिकारी भी निवृत्तिमार्गी बन जाये। निवृत्ति-मार्ग का प्रधान गुण है त्याग जो सर्वसाधारण के लिए सुलभ नहीं। इसीलिए अधिकारी पुरुष ही निवृत्ति- मार्गी बन सकता है क्योंकि जो तत्वज्ञ नहीं वह निवृत्ति-मार्ग के नियमों का पालन नहीं कर सकता। निवृत्ति मार्ग का यह अर्थ नहीं कि मनुष्य घर-बार और बाल-बच्चों का त्याग कर अकर्मण्य बन जाये और तमूरा खड़का कर अपना पेट पालता फिरे । त्याग मानसिक होता है और उसमें वह शक्ति होती है जो देश, जाति, समाज और मानवीय श्रात्मा को बहुत उन्नत बना देती है। जो अपने गृह को, परिवार को, पड़ोस को, ग्राम को अपनी सहानुभूति, सत्यव्यवहार और त्याग-बल से उन्नत नहीं बना सकता उसका देश और जाति को ऊँचा उठाने का राग अला- पना अपनी आत्मा को ही प्रताड़ित नहीं करना है, प्रत्युत दूसरों के सामने ऐसे अादर्श उपस्थित करना है जो लोक-संग्रह का बाधक है। निगुणवादियों ने लोक-संग्रह की ओर दृष्टि डाली ही नहीं। वे संसार की असारता का राग ही गाते और उस लोक की ओर जनता को अाकर्षित करने का उद्योग करते देखे जाते हैं जो सर्वथा अकल्प- नीय है। वहाँ सुधा का स्रोत प्रवाहित होता हो, स्वर्गीय गान श्रवणगत होता हो, सुर-दुर्लभ अलौकिक पदार्थ प्राप्त होते हों वहाँ उन विभूतियों का निवास हो जो अचिन्तनीय कही जा सकती हैं। परन्तु वे जीवों के किस काम की जब उनको वे जीवन समाप्त करके ही प्राप्त कर सकते हैं १ मरने के उपरान्त क्या होता है, अब तक इस रहस्य का उद्घाटन नहीं हुअा। फिर केवल उस कल्पना के आधार पर उसको असार कहना जिसका हमारे जीवन के साथ घनिष्ट सम्बन्ध है क्या बुद्धिमत्ता है, यदि संसार असार है और उसका त्याग आवश्यक है तो उस सार वस्तु को सामने आना चाहिये कि जो
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