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कविवर सूरदास ] १८६ [ 'हरिऔध' से अब तक का साहित्य उठा लीजिये, उसमें स्वयं-प्रकाश सूर की ही प्रभा विकीर्ण होती दिखलायी पड़ेगी। जो मार्ग उन्होंने दिखलाया वह अाज तक यथातथ्य सुरक्षित है। उसमें कोई साहित्यकार थोड़ा परिवर्तन भी नहीं कर सका। कुछ कवियों ने प्रान्त-विशेष के निवासी होने के कारण अपनी रचना में प्रान्तिक शब्दों का प्रयोग किया है। परन्तु वह भी परिमित है। उन्होंने उस प्रधान अादर्श से मुँह नहीं मोड़ा जिसके लिए कविवर सूरदास कवि-समाज में अाज तक पूज्य दृष्टि से देखे जाते हैं। डाक्टर जी. ए. ग्रियर्सन ने उनके विषय में जो कुछ लिखा है आप लोगों के अवलोकन के लिए उसे भी यहाँ उद्धृत करता हूँ। वे लिखते हैं:___ "साहित्य में सूरदास के स्थान के सम्बन्ध में मैं यहीं कह सकता हूँ कि वह बहुत ऊँचा है। सब तरह की शैलियों में वे अद्वितीय हैं । आवश्यकता पड़ने पर वे जटिल से जटिल शैली में लिख सकते थे और फिर दूसरे ही पद में ऐसी शैली का अवलम्बन कर सकते थे जिसमें प्रकाश की किरणों की सी स्पष्टता हो। किसी गुण विशेष में अन्य कवि भले ही उनकी बराबरी कर सके हों, किन्तु सूरदास में अन्य समस्त कवियों के सर्वोत्कृष्ट गुणों का एकत्र भाव है ।*
- "Regarding Surdas's place in literature, I commonly add that he justly holds a high one. He excelled in all styles. He could, if occasion required, be more obscure than the spbynu and in the next verse he as clear as a ray of light. Other poets may have equalled him in some particular quality, but he combined the best qualities of all."