अच्छा मार्मिक तथा मर्मस्पर्शी चित्रण किया गया है। कला-कौशल और अलंकार-वैचित्र्य भी स्तुत्य है। इसी एक काव्य से उपाध्याय जी खड़ी बोली के कवि-सम्राट होकर अमर हो गये हैं; साथ ही खड़ी बोली का काव्य भी इसी से गौरवान्वित हुआ है। अतुकान्त शैली के सफल तथा स्तुत्य प्रवर्तक हम हिन्दी क्षेत्र में हरिऔध जी को ही मान सकते हैं।
आप खड़ी बोली के सर्वोच्च प्रतिनिधि, कवि-सम्राट, मर्मज्ञ, ठेठ हिन्दी के अनुकरणीय लेखक तथा बोल-चाल की भाषा के विशेषज्ञ माने जाते हैं। आप सरल और क्लिष्ट दोनों प्रकार की साहित्यिक भाषा के सिद्धहस्त लेखक एवं कवि हैं। खड़ी बोली के विविध रूपों तथा उसकी शैलियों पर आपका पूरा अधिकार है। मुहाविरों तथा लोकोक्तियों के प्रयोग में आप पूर्ण पटु-पंडित हैं। 'ठेठ हिन्दी का ठाठ' और 'अधखिला फूल' में औपन्यासिक कला-कौशल तो उतना महत्वपूर्ण नहीं, जितना भाषा एवं रचना कौशल है, परन्तु इनके साथ यदि 'वेनिस का बाँका' रखा जाय तो यही कहना पड़ता है कि उपाध्याय जी को हिन्दी भाषा पर पूर्ण अधिकार प्राप्त है।
वे न केवल कवि-सम्राट ही हैं, वरन् लेखक-सम्राट भी हैं। यदि एक ओर वे उच्च कोटि की संस्कृतप्राय भाषा लिख सकते हैं तो दूसरी ओर सरलातिसरल ठेठ हिन्दी भी।
--शुक्ल 'रसाल'
"खड़ी बोली के उस काल के कवियों में पं० अयोध्यासिंह उपाध्याय 'हरिऔध' की काव्य-साधना विशेष महत्व की ठहरती है। सहृदयता और कवित्व के विचार से भी ये अग्रगण्य हैं, परन्तु संस्कृत के वृत्तों तथा प्रचलित समस्त पदों के प्रयोग की प्रथाएँ भी नहीं छोड़ सके। इनके समस्त पद औरों की तुलना में अधिक मधुर ह