कविवर सूरदास सोलहवीं शताब्दी में ही हिन्दी-संसार के सामने साहित्य गगन के उन उज्ज्वलतम तीन तारों का उदय हुआ जिनकी ज्योति से वह आज तक . ज्योतिर्मान है । उनके विषय में चिर-प्रचलित सर्वसम्मति यह है:- सूर सूर, तुलसी ससी, उडुगन केसवदास । अब के कवि खद्योत सम जहँ तहँ करत प्रकास । काव्य करैया तीन हैं, तुलसी, केशव, सूर । कविता खेती इन लुनी, सीला बिनत मजूर । यह सम्मति कहाँ तक मान्य है, इस विषय में मैं विशेष तर्क-वितर्क नहीं करना चाहता। परन्तु यह मैं अवश्य कहूँगा कि इस प्रकार के सर्व- साधारण के विचार उपेक्षा योग्य नहीं होते, वे किसी आधार पर होते हैं । इसलिए उनमें तथ्य होता है और उनकी बहुमूल्यता प्रायः असंदिग्ध होती है। इन तीनों साहित्य-महारथियों में किसका क्या पद और स्थान है इस बात को उनका वह प्रभाव ही बतला रहा है जो हिन्दी संसार में व्यापक होकर विद्यमान है। मैं इन तीनों महाकवियों के विषय में जो सम्मति रखता हूँ, उसे मेरा वक्तव्य ही प्रकट करेगा, जिसे मैं इनके सम्बन्ध
पृष्ठ:रस साहित्य और समीक्षायें.djvu/१६४
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।