कबीर साहब ] . १५५ [ 'हरिऔध' ___भावना और शब्द-साखी में कबीर से लेकर राधास्वामी तक के सभी सन्त चौरासी सिद्धों के ही वंशज कहे जा सकते हैं। कबीर का प्रभाव जैसे दूसरे संतों पर पड़ा और फिर उन्होंने अपनी अगली पीढ़ी पर जैसे प्रभाव डाला, इसको शृङ्खलावद्ध करना कठिन नहीं है। परन्तु कबीर का सम्बन्ध सिद्धों से मिलाना उतना आसान नहीं है, यद्यपि भावनाएँ, रहस्योक्तियाँ, उल्टी बोलियों की समानताएँ बहुत स्पष्ट हैं।" इसी सिलसिले में सिद्धों की रचनाएँ भी देख लीजिये- १-(मूल) निसि अन्धारी सुसार चारा । ___ अमिय भख मूषा करअ अहारा । मार रे जोइया भूषा पवना। जेण तूट अवणा गवणा। भव विदारअ मूसा रवण अगति । चंचल मूसा कलियाँ नाश करवाती काला मूसा ऊहण बाण । गपणे उठि चरब अमण धाण तब से मूषा उंचल पांचल । सद्गुरु वोहे करिह सुनिच्चल ! जबै मूषा एरचा तूटअ। भुसुक भणअ तबै बांधन फिट । भुसुक छाया- निसि अँधियारी सँसार सँचारा । अमिय भक्ख मूसा करत अहारा। मार रे जोगिया मूसा पवना। जेहित टूटै अवना - गवना ।
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