पृष्ठ:रस साहित्य और समीक्षायें.djvu/१५२

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कबीर साहब ] १५३ [ 'हरिऔध' जोति देखि देखी पड़ेरे पतंगा। नादै लीन कुरंगा रे लो ॥ एहि रस लुब्धी मैगल मातो। स्वादि पुरुष ते भौंरा रे लो॥ कणेरी पाव। ४--किसका बेटा, किसकी बहू, श्राप सवारथ मिलिया सहू । जेता पूला तेती आल, चरपट कहै सब आल जंजाल । चरपट चीर चक्रमन कंथा, चित्त चमाऊँ करना। ऐसी करनी करो रे अवधू, ज्यो बहुरि न होई मरना ।। चरपट नाथ। ५-साधी सूधी के गुरु मेरे, बाई सूब्यंद गगन मैं फेरै। मनका बाकुल चिड़ियाँ बोलै, साधी अपर क्यों मन डोले ॥ बाई बंध्या सयल जग, बाई किनहुँ न बंध । बाइबिहूणा ढहिपरै, जोरै कोई न संधि । चुणकर नाथ। कहा जा सकता है कि ये नाथ सम्प्रदाय वाले कबीर साहब के बाद के हैं। इसलिए कबीर साहब की रचनाओं से स्वयं उनकी रचनाएँ प्रभावित हैं, न कि इनकी रचनाओं का प्रभाव कबीर साहब की रच- नाओं पर पड़ा है। इस तर्क के निराकरण के लिए मैं प्रकट कर देना चाहता हूँ कि जलन्धर नाथ मछन्दर नाथ के गुरुभाई थे जो गोरखनाथ जी के गुरु थे ! चौरंगीनाथ गोरखनाथ के गुरु-भाई, कणेरीपाव जलं- धरनाथ के और चरपटनाथ मछन्दरनाथ के शिष्य थे। चुणकरनाथ भी इन्हीं के समकालीन थे *। इसलिए इन लोगों का कबीर साहब ___* देखिये नागरी प्रचारिणी पत्रिका भाग ११, में प्रकाशित 'योग- प्रवाह' नामक लेख ।