छायावाद] १३४ [ 'हरिऔध' छायावाद के अथवा रहस्यवाद के प्राचार्य कहे जाते हैं, क्या उन्होंने श्राजीवन रहस्यवाद की ही रचना की प्राचीन कवियों में ही हम प्रसिद्ध रहस्यवादी कबीर और जायसी को ले-ले तो हमें ज्ञात हो जायगा कि सौ पद्यों में यदि दस पाँच रचनाएँ, उनकी रहस्यवाद की हैं, तो शेष रचनाएँ अन्य विषयों की । क्या उनकी ये रचनाएँ निन्दनीय, अनुपयुक्त तथा अनुपयोगी हैं ? नहीं, उपयोगी हैं और अपने स्थान पर उतनी ही अभिनन्दनीय हैं जितनी रहस्यवाद की रचनाएँ। एकदेशीय ज्ञान अपूर्ण होता है और एकदेशीय विचार अव्यापक । जैसे शरीर के सब अंगों का उपयोग अपने अपने स्थानों पर है, जैसे किसी हरे वृक्ष का प्रत्येक अंश उसके जीवन का साधन है, उसी प्रकार साहित्य तभी पुष्ट होता है जब उसमें सब प्रकार की रचनाएँ पायी जाती हैं, क्योंकि उन सबका उपयोग यथास्थान होता है। जो कविता आन्तरिक प्रेरणा से लिखी जाती है, जिसमें हृतंत्री की झंकार' मिलती है, भावोच्छास का विकास पाया जाता है । जिसमें सहृदयता है, सुन्दर कल्पना है, प्रतिभा तरंगायित है, जिसका वाच्यार्थ स्पष्ट है, सरल है, सुबोध है, वही सच्ची कविता है, चाहे जिस विषय पर लिखी गयी हो और चाहे जिस भाषा में हो । कौन उसका सम्मान न करेगा और कहाँ वह आहत न होगी ? कवि हृदय को उदार होना चाहिये, वृथा पक्षपात और खींच- तान में पड़ कर उसको अपनी उदात्त वृत्ति को संकुचित न करना चाहिये । मेरा कथन इतना ही है कि एकदेशीय विचार अच्छा नहीं, उसको व्यापक होना चाहिये। किसी फूल में रंग होता है, किसी की गठन अच्छी होती है, किसी का विकास सुन्दर होता है, किसी में सुगंधि पायी जाती है-सब बात सब फूलों में नहीं मिलती। कोई ही फूल ऐसा होता है जिसमें सब गुण पाये जाते हैं। जिस फूल में सब गुण हैं, यह कौन न कहेगा कि वह विशेष आदरणीय है। परन्तु अन्यों का भी कुछ स्थान है और उपयोग भी। इसीलिए जिसमें जो विशे-
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